तलाक की सुनवाई से ठीक एक रात पहले, मैंने अपने पति को बिस्तर पर बुलाया , उसे वो चीज़ दिखाई जिससे उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। सिर्फ़ 30 मिनट बाद वह मेरे सामने घुटनों पर गिरकर वापस आने की भीख माँग रहा था लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
मेरा नाम अनन्या मेहता है और यह कहानी है मेरे छह साल के विवाह,मेरे टूटने, मेरे उठ खड़े होने और मेरे “स्वतंत्र” हो चुके पति अर्जुन की सबसे बड़ी हार की।
मेरी और अर्जुन कपूर की शादी कभी सबकी ईर्ष्या थी।वह दिल्ली का एक प्रतिभाशाली आर्किटेक्ट था और मैं इंटीरियर डिज़ाइनिंग की दीवानी।हमारा प्यार कॉलेज के दिनों में शुरू हुआ था।अर्जुन मेरी उँगली पकड़कर कनॉट प्लेस की सड़कों पर घूमता और ऊँची इमारतों की तरफ इशारा करके कहता—
"एक दिन मैं अपना घर खुद डिज़ाइन करूँगा और उसमें जान तुम डालोगी" और उसने ऐसा किया भी।
हमें दक्षिण दिल्ली में एक छोटा पर खूबसूरत घर मिला।वह अक्सर कहता-“तुम बस मुस्कुराती रहना बाकी दुनिया मुझ पर छोड़ दो।” मैंने उस पर यकीन किया।अपना सपना "खुद का ब्रांड खोलने का" दराज़ में बंद कर दिया। सोचा,परिवार सबसे पहले लेकिन समय,वही सबसे बड़ा सच दिखाता है।
अर्जुन बदलने लगा,धीरे,ख़तरनाक तरीके से।रातें देर तक बाहर रहना,अजीब बहाने,ठंडी बातें और एक दिन… उसकी शर्ट पर एक ऐसी खुशबू मिली जो न मेरी थी और ना उसके दफ़्तर वाली किसी महिला की। उसका फोन हमेशा उल्टा रखा होता।
कोई मैसेज आए तो वह बालकनी में जाकर फुसफुसाते हुए बात करता।
एक रात उसका फोन मेज़ पर बजा।मैंने देखने की कोशिश भी नहीं की लेकिन स्क्रीन पर चमका नाम:-“रूही रेडलिप्स” और नीचे सिर्फ़ दो शब्द:-“मिस यू।”
जब मैंने उससे पूछा तो अर्जुन हँस पड़ा।एक ऐसी हँसी जो किसी भी स्त्री का दिल तोड़ देती है। तुम हमेशा ओवरथिंक करती हो। बस एक को-ऑर्डिनेटर है। ऑफिस में मज़ाक में निकनेम रखे हुए हैं।”
मैंने चाहा कि मैं उस पर भरोसा करूँ लेकिन विश्वास भी टूटता है,एक बार, बस एक बार। वह मुझे “पुरानी”, “बोरिंग”, “गृहिणी वाली” कहने लगा।कहता-“ज़रा आधुनिक बनो, तुम बिल्कुल गाँव की औरत लगती हो।”
मैंने आईने में देखा।थकी हुई आँखें,बिखरे बाल,सादी साड़ी🥱हाँ, मैं बदल गई थी लेकिन उसके लिए, उसके घर,उसके सुख के लिए और फिर एक शाम,जब मैंने उसकी पसंदीदा राजस्थानी दाल बाटी बनाकर मेज़ पर रखी तो अर्जुन ने चम्मच नीचे रख दिया और ठंडी आवाज़ में बोला:- “मैं तलाक चाहता हूँ।”
मेरे हाथ काँप गए लेकिन मैंने आँसू नहीं बहाए🥱
उसने झुँझलाकर कहा:-“हम अब एक दूसरे के लिए नहीं बने हैं। मुझे आज़ादी चाहिए,वही आज़ादी जिसके लिए वह “रूही” के पास जाना चाहता था।
वह घर छोड़कर चला गया और उसी रात मैंने निर्णय कर लिया मैं रोकर अपने चेहरे पर दया नहीं पेंट करूँगी,मैं अपना साम्राज्य खड़ा करूँगी।
अर्जुन सोचता रहा कि मैं टूटी हुई,उदास,घर में सिमटी औरत हूं😎उसे क्या पता था—जब वह “क्लाइंट मीटिंग” के नाम पर डेट्स पर जा रहा था,मैं दिल्ली के सबसे बड़े फर्नीचर हब, किरीड़ी नगर,में सप्लायर्स से मिल रही थी। जब वह देर रात “ओवरटाइम” कर रहा था,मैं ऑनलाइन एमबीए का कोर्स कर रही थी। जब वह मुझे कहता कि मैं “कुछ नहीं कर सकती”—
मैं करोड़ों का कॉन्ट्रैक्ट साइन कर रही थी💪
छह महीने तक मैंने दिन रात खून पसीना लगाया और खड़ा किया—A.M. Interiors — Ananya Mehta Interiors Pvt Ltd.(मेरे नाम का पहला अक्षर,मेरी पहचान)
मैंने अपना ऑफिस लिया, टीम बनाई, प्रोजेक्ट्स जीते,यहाँ तक कि एक इंटरनेशनल होम-डेकोर ब्रांड से भी कॉन्ट्रैक्ट कर लिया।
और अर्जुन?
उसे लगा कि मैं अभी भी वही “सिंपल गृहिणी” हूं,तलाक से एक रात पहले,घर बिल्कुल ख़ामोश था। मैं नीचे आई और कहा:-अर्जुन,ऊपर चलो,मुझे कुछ दिखाना है।
वह थका हुआ और चिढ़ा हुआ बोला:-ड्रामा मत करो,अनन्या, सुबह कोर्ट जाना है लेकिन फिर भी मेरे पीछे आ गया।
मैंने लाइट धीमी की,लैपटॉप को टीवी स्क्रीन से जोड़ा और प्ले किया…
एक शानदार, प्रोफेशनल विज्ञापन।
लक्ज़री फ़्लैट्स,खूबसूरत इंटीरियर,परफेक्ट लाइटिंग,उत्तम प्लानिंग…
अर्जुन धीरे धीरे स्क्रीन के पास झुक गया। फिर उसके चेहरे पर हैरानी फैलने लगी🥱
विज्ञापन खत्म हुआ और उसके बाद स्क्रीन पर आया—A.M. Interiors – Designed by Ananya Mehta (Founder & CEO)और फिर मेरे ही फुटेज:
मैं टीम को निर्देश दे रही थी,मीटिंग्स ले रही थी,ब्लूप्रिंट्स approve कर रही थी।एक आत्मविश्वासी,स्टाइलिश,सफल महिला।
अर्जुन के मुँह से आवाज़ ही नहीं निकली🥱
आखिर उसने काँपते स्वर में पूछा:-“ये… सब तुम्हारा है?”
मैंने शांत हँसी के साथ कहा:- हाँ,अर्जुन,छह महीने तुम्हारी ‘आज़ादी’ के छह महीने…मैंने अपनी दुनिया बना ली।” और फिर आख़िरी वार—
रूही जिस कंपनी में इंटरव्यू दे रही है?
वही कंपनी है जिसे मैंने अभी अभी बड़ा कॉन्ट्रैक्ट हराकर हरा दिया।”
अर्जुन के चेहरे से रंग उड़ गया🥱वह मुझे घूरता रहा, जैसे मुझे पहली बार देख रहा हो।
फिर…
वह मेरे सामने घुटनों पर बैठ गया,बोला:-अनन्या,मैं गलत था।
कृपया हमें एक मौका दो। मैं तुम्हें खो नहीं सकता,मैंने उसका चेहरा देखा। पहली बार वह सच में टूटा हुआ दिख रहा था लेकिन मेरा दिल शांत था, बिना किसी आँसू के।
मैंने उसके हाथ हटाए और धीरे से कहा:-अर्जुन,तुमने आज़ादी माँगी थी,अब… उसे जिओ।
अगली सुबह,मैंने ताज होटल के सामने स्थित दिल्ली फ़ैमिली कोर्ट से एक मुस्कान के साथ बाहर कदम रखा। काग़ज़ों पर सिर्फ़ एक हस्ताक्षर था लेकिन मेरे भीतर एक पूरी दुनिया खुल चुकी थी।
पीछे,अर्जुन खड़ा था,आँखों में पछतावा,हाथों में खालीपन। मैंने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
नया सूरज,नई हवा,नई अनन्या।
मैं अब सिर्फ़ उसकी “गृहिणी” नहीं थी।मैं थी—CEO. Founder.और सबसे बड़ी बात,आज़ाद💪
कभी कभी,स्त्रियाँ बदला नहीं लेतीं।वे बस और बेहतर बन जाती हैं और वही—सबसे कीमती जवाब होता है


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